भारत - पाकिस्तान विवाद पर आपके जेब में क्या हुआ असर, इस रिपोर्ट्स से खुलासा डॉलर और भी हुआ मजबूत
7 मई को भारतीय रुपये में भारी गिरावट देखने को मिली, जो कि पिछले एक महीने में सबसे बड़ी गिरावट थी। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव की वजह से विदेशी मुद्रा बाजार में अफरातफरी का माहौल था।

7 मई को भारतीय रुपये में भारी गिरावट देखने को मिली, जो कि पिछले एक महीने में सबसे बड़ी गिरावट थी। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव की वजह से विदेशी मुद्रा बाजार में अफरातफरी का माहौल था। इसके साथ ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक और एशियाई मुद्राओं में कमजोरी ने रुपये पर और दबाव डाला। 7 मई को बाजार खुलते ही रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होकर 84.62 पर खुला। जो कि 6 मई के 84.44 से 18 पैसे कम था। पूरे दिन रुपया 84.47 से 84.93 के बीच उतार-चढ़ाव करता रहा और अंत में 84.83 पर बंद हुआ। यह 6 मई के मुकाबले 39 पैसे की गिरावट है और 9 अप्रैल के बाद रुपये का सबसे खराब प्रदर्शन है।
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों पर गौर करें तो एक महीने के नॉन-डिलीवरेबल फॉरवर्ड में रुपये की ओपनिंग 84.64 से 84.68 फीसदी पर आंकी गई थी। इसका मतलब है कि बाजार को पहले से ही गिरावट का अंदाजा था। लेकिन यहां सवाल यह है कि रुपये की कीमत में गिरावट क्यों आई है?
गिरावट का क्या है कारण?
इस गिरावट का सबसे बड़ा कारण भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव माना जा रहा है। 6 और 7 मई की दरमियानी रात यानी 6 मई को करीब 1:30 बजे भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के अंदर घुसकर हमले किए गए। भारत ने पाकिस्तान के अंदर नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। ये ठिकाने पिछले महीने भारत के जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले से जुड़े थे। जिसमें 26 भारतीयों की जान चली गई थी। हालांकि, इस पूरी कार्रवाई से पाकिस्तान भी काफी खफा है, जो जाहिर है और पाकिस्तान इसे सीधे तौर पर युद्ध की कार्रवाई बता रहा है और इस मामले को यूएसएसी में उठाने की बात भी कर रहा है। इस पूरे माहौल से यह साफ हो गया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव गहराता जा रहा है और इसका असर रुपये पर भी देखने को मिल रहा है।
RBI करेगा ऐसी पहल
एक निजी बैंक के कारोबारी के मुताबिक, ऐसी स्थिति में आरबीआई जरूर हस्तक्षेप करेगा ताकि बाजार में कोई बड़ा असंतुलन न हो। वहीं, न्यूजीलैंड के रणनीतिकार धीरज निम का कहना है कि आरबीआई इसमें काफी सख्ती से हस्तक्षेप कर सकता है। अगर अस्थिरता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। यानी अनिश्चितता बढ़ती है तो आरबीआई को आगे आना पड़ेगा। वहीं रिपोर्ट्स की मानें तो आरबीआई और वित्त मंत्रालय दोनों ही इस पूरी स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं।
कच्चे तेलों की कीमत में उतार चढ़ाव
आपको बता दें कि 7 मई को एशियाई मुद्राएं भी कमजोर रही थीं। अगर चीनी युआन की बात करें तो यह 7.22 पर था और इंडोनेशियाई रुपया 0.5 फीसदी गिर गया था। डॉलर इंडेक्स भी 0.23 फीसदी की बढ़त के साथ 99.46 पर कारोबार कर रहा था। जिससे रुपये पर और भी ज्यादा दबाव देखने को मिला। इस दौरान ब्रैंड क्रूड भी 0.42 फीसदी बढ़कर 62.41 प्रति बैरल पर पहुंच गया। कच्चे तेल की कीमत में इस तेजी को भी रुपये के कमजोर होने की एक वजह के तौर पर देखा गया। यानी ऐसे वैश्विक कारक रहे जिन्होंने भारतीय रुपये को कमजोर किया। अब भारतीय शेयर बाजार में भी दिनभर उतार-चढ़ाव रहा लेकिन अंत में बाजार हरे निशान में बंद हुआ।
इन शेयर बाजारों में भी उतार चढ़ाव
बीएसई ससेक्स 105.71 अंकों की बढ़त के साथ 80,746 अंकों के स्तर पर बंद हुआ। जबकि निफ्टी 34.80 अंकों की बढ़त के साथ 24,414 के स्तर पर बंद हुआ। हालांकि यह तेजी विदेशी निवेशकों की लगातार खरीदारी के चलते संभव हो पाई है। जिन्होंने पिछले 14 कारोबारी दिनों में 43,940 करोड़ की खरीदारी की है। बाजार में इस समय भरोसा देखने को मिल रहा है। भारत द्वारा की गई एयर स्ट्राइक को भारतीय बाजार ने भी अंगूठा दिखा दिया है। तनाव के चलते भारतीय बाजार झुकते नजर नहीं आया है।
हालांकि आपको बता दें कि सिंगापुर की एक हेज फंड कंपनी के मुताबिक अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और बढ़ता है तो रुपया और दबाव में आ सकता है। हालांकि अगर अमेरिकी डॉलर कमजोर होता है और वैश्विक बाजार स्थिर रहते हैं तो रुपये को थोड़ी राहत मिल सकती है।
मेरा असद शेर खान के मुताबिक एफआईआई की खरीदारी के चलते रुपया कुछ हद तक संभल सकता है तो कुल मिलाकर एक्सपर्ट्स का मानना है कि USD IAR की ट्रेडिंग रेंज 84.40 से 85.10 के बीच रह सकती है। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण बाजारों में चिंता का माहौल है। रुपये की कमजोरी और बाजार में उतार-चढ़ाव ने निवेशकों को थोड़ा सतर्क कर दिया है और एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि उन्हें सतर्क रहना चाहिए। आने वाले दिनों में आरबीआई की भूमिका अहम होगी क्योंकि अगर बाजार में अनिश्चितता बढ़ती है तो केंद्रीय बैंक को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। साथ ही फेड की पॉलिसी मीटिंग से बाजार की दिशा जरूर तय होगी।