जिले के टॉपर्स को नहीं बल्कि 55% अंक लाने वाले इस बच्चे को डीएम ने किया सम्मानित, पहली बार इस गांव में कोई 10वीं हुआ पास
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के निजामपुर गांव में करीब 78 साल बाद कोई बच्चा 10वीं की परीक्षा में पास हुआ है। 300 कि आबादी वाले इस गांव में बहुत कम लोग ही पढ़े लिखे है।

देश के कई राज्यों में बोर्ड के द्वारा आयोजित 10वीं 12वीं के परीक्षा परिणाम आ गए हैं। किसी ने प्रदेश में टॉप किया है तो कोई अच्छे नंबरों से पास हुआ है। लेकिन उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के निजामपुर गांव में करीब 78 साल बाद कोई बच्चा 10वीं की परीक्षा में पास हुआ है। 300 कि आबादी वाले इस गांव में बहुत कम लोग ही पढ़े लिखे है। ऐसे में रामसेवक नाम का एक बच्चा जो शादियों में रोड लाइट सिर पर उठाकर परिवार का भरन पोषण कर कुछ समय निकालकर पढ़ाई करता था। रामसेवक ने अपने गांव का इतिहास बदल दिया और 10वीं की परीक्षा में 55% अंक लाकर गांव का पहला व्यक्ति बना।
निजामपुर गांव के इतिहास के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। पूरे गांव का माहौल अलग ही बना है। इस बदलते माहौल और रामसेवक के संघर्ष को जानने के लिए मीडिया की टीम इस गांव पहुंची। रामसेवक और उसके माता पिता से बात की।
300 की आबादी वाले गांव में सभी मजदूर
बारांबकी जिला मुख्यालय से लगभग 28 किलोमीटर दूर निजामपुर गांव है। यह अहमदपुर ग्राम पंचायत का एक टोला है। गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क है। गांव की शुरुआत में एक प्राइमरी विद्यालय है इसी के दूसरी साइड एक मंदिर है। इस पूरे गांव की कुल आबादी 250 से 300 के बीच है। इन घरों के जो मुखिया है सभी मजदूरी का काम करते हैं। कुछ दूसरे जिले तो कोई दूसरे राज्य में रहता है।
शिक्षा के मामले में यह गांव इतना पीछे है कि इस वर्ष से पहले यहां किसी ने दसवीं की परीक्षा पास नहीं की है। इस साल 15 वर्षीय रामसेवक ने गांव के 78 साल के पुराने इतिहास को मिटाने की कोशिश की है और उसने दसवीं की परीक्षा पास की है।
रामसेवक का स्कूली नाम रामकेवल है। लेकिन लोग उन्हें प्यार से रामसेवक के नाम से ही बुलाते हैं। मीडिया जब रामसेवक के घर पहुंची तो पाया दो कमरों का घर है। एक कमरे में जानवरों के लिए चारा पानी रखा है तो दूसरे में पूरा परिवार रहता है। इन दोनों कमरों के सामने एक घास फूस का छप्पर पड़ा है। इसमें सभी लोग सोते हैं। इस घर में बिजली नहीं है घर के सामने ही विधायक कोटे से मिली एक सोलर लाइट लगी हुई है। रामसेवक से जब मीडिया ने बात की तो पहला सवाल यही था की पढ़ाई करना है इसका ख्याल कब और कैसे आया?
सिर पर रोड लाइट उठाता फिर रात में पढ़ता
रामसेवक ने बताया कि गांव में एक प्राइमरी विद्यालय थी। इसलिए पहली क्लास से यही पढ़ाई की। जिसके बाद छठी क्लास के लिए गांव से करीब 500 मीटर दूर राजकीय इंटर कॉलेज है। जहां जा कर अपना नाम लिखवाया सारे क्लास में अच्छे नंबर के साथ पास होता गया। दसवीं क्लास में गया तो स्कूल में जो भी होमवर्क होता उसको अच्छे से पढ़ना और उसकी तैयारी करता। जब पढ़ाई करते तो आसपास के लोग कहते कि क्या कर लोगे तुम। 10वीं पास नहीं हो पाओगे। तब मैं उनसे कहता था कि मैं पास होकर जरूर दिखाऊंगा।
DM से मिलने के लिए विद्यालय ने जूते कपड़े दिए
इस गांव में पहली बार किसी ने दसवीं की परीक्षा पास की तो चारों तरफ चर्चाएं शुरू हो गई। बारांबकी के डीएम शशांक त्रिपाठी ने मिलने तक का निमंत्रण दिया। उसके पास ना तो कपड़े थे और ना ही जूते। लेकिन राजकीय इंटर कॉलेज के शिक्षकों ने रामसेवक के लिए कपड़े और जूते का प्रबंध किया यह पहला मौका था जब राम सेवक ने जूता पहना था। पैर की उंगलियां फैली थी और जूते में नहीं आ रही थी। किसी तरह से पहना और डीएम से मिलने पहुंचा। रामसेवक को देख डीएम ने सम्मानित किया और आगे की पढ़ाई के लिए फीस भी माफ कर दी।
रामसेवक के माता पिता बोले हम खुश है
रामसेवक की मांग पुष्पा ने कहा - डीएम साहब ने बच्चे की फीस माफ करवा दी है तो अच्छा लग रहा है। हम अपने बाकी सारे बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं। आगे भी जितना हो सकेगा पढ़ाएंगे। पिता जगदीश प्रसाद बोले,- हम बस यही कहते कि गांव में कोई पास नहीं हुआ है, तुम पढ़ाई करके पास हो जाओ। अब वह पास हो गया है तो अच्छा लगता है। बेटा जितना पढ़ना चाहेगा उसे पढ़ाएंगे।