मध्य प्रदेश का रीवा जिला भारतीय राजनीति के प्रारंभिक चरणों से ही एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। इस जिले ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया, बल्कि आज़ादी के बाद लोकतांत्रिक संस्थाओं की नींव रखने में भी प्रमुख भूमिका निभाई। रीवा जिले के पहले सांसद और विधायक कौन थे, किस वर्ष उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन किया — यह जानना न केवल रोचक है, बल्कि इतिहास को समझने के लिए भी जरूरी है।

रीवा के पहले सांसद ठाकुर राम सिंह

रीवा जिले से पहले लोकसभा सांसद थे ठाकुर राम सिंह, जो 1952 के प्रथम आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे। यह वह समय था जब भारत ने संविधान लागू होने के बाद पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से आम चुनाव कराया था। ठाकुर राम सिंह एक लोकप्रिय नेता थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भागीदारी निभा चुके थे। उनके व्यक्तित्व में ओज, विचारों में स्पष्टता और जनता के प्रति निष्ठा का भाव था।

1952 में हुए पहले आम चुनाव में रीवा संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने भारी बहुमत से ठाकुर राम सिंह को संसद भेजा। संसद में रहते हुए उन्होंने क्षेत्र की बुनियादी जरूरतों—जैसे शिक्षा, सड़क, सिंचाई और स्वास्थ्य सेवाओं—की मजबूती के लिए प्रभावी रूप से आवाज़ उठाई। वह भारतीय लोकतंत्र के उस पहले चरण का हिस्सा थे, जब संसद एक नवजात संस्था थी और पूरे देश में एक नई उम्मीद जगी थी।

रीवा के पहले विधायक ठाकुर रणमत सिंह

रीवा जिले के पहले विधायक बने ठाकुर रणमत सिंह, जिन्हें 1951-52 के पहले विधानसभा चुनाव में चुना गया था। वे रीवा राज्य के राजपरिवार से संबंध रखते थे और सामाजिक व राजनीतिक रूप से अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति थे। रणमत सिंह भी स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थक रहे थे और उन्होंने जनता से निकट संपर्क बनाए रखते हुए चुनाव लड़ा।

1952 में जब मध्य प्रदेश विधानसभा की स्थापना हुई, तो ठाकुर रणमत सिंह ने रीवा जिले के एक प्रमुख क्षेत्र से जीत दर्ज की। उनकी राजनीति का केंद्र बिंदु ग्रामीण विकास, किसानों की भलाई, और शिक्षा का प्रचार-प्रसार था। उनके प्रयासों से रीवा जिले में कई विद्यालयों की स्थापना हुई और किसान सहकारी समितियों को बढ़ावा मिला।

लोकतंत्र की नींव में रीवा का योगदान

रीवा के इन दोनों जनप्रतिनिधियों—सांसद ठाकुर राम सिंह और विधायक ठाकुर रणमत सिंह—ने न केवल राजनीतिक पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाई, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर्श भी दिया। इन्होंने दिखाया कि जनसेवा किस प्रकार एक सच्चे जनप्रतिनिधि की पहचान होती है।

आज जब हम भारत के 75 से अधिक वर्षों के लोकतांत्रिक सफर को देखते हैं, तो रीवा जिले के इन प्रारंभिक नेताओं का योगदान स्मरणीय और प्रेरणादायक प्रतीत होता है। इन नेताओं की ईमानदारी, संघर्षशीलता और दूरदर्शिता ने रीवा को मध्य भारत की राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया।

रीवा जिले के पहले सांसद और विधायक ना केवल इतिहास के पन्नों में दर्ज नाम हैं, बल्कि वे उस चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने भारत के लोकतंत्र को मजबूत नींव दी। उनकी गाथा हमें सिखाती है कि सच्चे नेतृत्व की चमक समय की धूसे कभी नहीं ढँकती।