रीवा जिले को एक नया न्यायालय भवन 4 मई को मिलने जा रहा है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के द्वारा इस नवनिर्मित भवन का लोकार्पण किया जाएगा, करीब 1935 यानी कि 90 साल बाद रीवा में कोई नया न्यायालय भवन बनाया गया है। या कानून व्यवस्था लागू की गई थी। करीब 16 एकड़ में फैले इस कोर्ट परिसर में 40 रूम है। पार्किंग के लिए जरूरी व्यवस्थाएं की गई है। इंदौर की एक कंपनी के द्वारा 95 करोड़ रुपए की लागत से इस खूबसूरत महल का आकार दिया गया है।

रीवा जिले का न्यायिक इतिहास

पहले रीवा जिले में राजतंत्र और राज दरबार में न्याय होता था। लेकिन रीवा के महाराजा विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अलग न्याय व्यवस्था शुरू की और 1827 में मिताक्षरा न्यायालय और धर्मसभा का गठन किया जो कचहरी मिताक्षरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पंडित कृष्णचारी, गोविंदराम शुक्ल और गोकुल नाथ महापात्र ने पवार दीवानी की व्यवस्था की, फौजदारी फैसले होने लगे और रामनाथ गढ़रिहा को धर्मसभा का शासक नियुक्त किया गया, कुछ दिनों बाद जगन्नाथ शास्त्री को धर्मसभा में शामिल कर लिया गया।

रीवा जिले की पुरानी रियासत जगन्नाथ शास्त्री के दरबार में एक व्यक्ति ने रीवा रियासत के राजा विश्वनाथ सिंह के खिलाफ मुकदमा दायर किया। जगन्नाथ शास्त्री जी उपस्थित हुए, शास्त्री जी ने इजहार नामक चालू आदेश पत्रिका लिखकर इनकार कर दिया।

रीवा राजतंत्र में ही लिखित कानून बनाये गये थे, जिसमें प्रमुख कानून रीवा राजमल अधिनियम, 1935 था। त्योंथर, मऊगंज एवं सिरमौर तहसील न्यायालयों का गठन 1935 में हुआ तथा रीवा में भी औपचारिक न्यायालय का गठन 1935 में ही हुआ था। तत्पश्चात जब विंध्य प्रदेश का गठन हुआ तो न्याय विंध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय का उद्घाटन 01.09.1948 को अपराह्न 03.45 बजे माननीय मुख्य न्यायाधीश राय बहादुर पीसी मोघा द्वारा किया गया तथा उस समय पंचोली चतुर सिंह, दुर्गा प्रसाद, लाल प्रदुमन सिंह न्यायाधीश के रूप में कार्यरत थे। 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के पश्चात उक्त न्यायिक आयुक्त को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में विलय कर दिया गया। बाबू राम मनोहर लाल ने रीवा राज में पृथक अधिवक्ता संघ का गठन किया, जिसके प्रथम अध्यक्ष बनने के पश्चात उन्होंने रीवा राजमल कानून बनाया। रीवा न्यायिक आयुक्त के न्यायाधीशों के फोटोग्राफ उपलब्ध हैं, रीवा रियासत के बाद 1948 से 1956 तक जिस उच्च न्यायालय में न्यायिक आयुक्त का न्यायालय लगा, उसकी फोटोकॉपी संलग्न है।

माननीय न्यायमूर्ति श्री जे.एस. वर्मा एवं माननीय न्यायमूर्ति श्री गुरु प्रसन्न सिंह रीवा न्यायिक आयुक्त न्यायालय एवं रीवा अधिवक्ता संघ के सदस्य थे।

16 एकड़ भूमि पर बनकर तैयार है शानदार भवन

रीवा जिले के इंजीनियरिंग कॉलेज की 16 एकड़ भूमि पर 95 करोड़ की लागत से जिला न्यायालय का नया भवन बनाया जा रहा था। न्यायालय भवन में बार रूम सहित 40 न्यायालय बनाए गए हैं। इस नए भवन का निर्माण वर्ष 2015 में ही शुरू कर दिया गया था। भवन निर्माण के लिए भूमि संबंधी बाधाएं थीं। बाद में भूमि फाइनल होने के बाद भवन का निर्माण कार्य शुरू हुआ। तीन साल बाद अब यह भवन बनकर तैयार हो गया है।

दो साल में पूरा होना था निर्माण

वैसे तो इस बिल्डिंग को दो साल में पूरा होना था, लेकिन कोविड के कारण इसके निर्माण में देरी हो गई। इसमें एक साल और लग गया। इसके अलावा बाद में कुछ और मंजिलें जोड़ी गईं। इस कारण इसकी लागत भी बढ़ गई। इस नई बिल्डिंग को बनाने में करीब 95 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। कंपनी ने बिल्डिंग से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर का काम पूरा कर लिया है।

कहां पर बनाया गया है रीवा का नया न्यायालय भवन

सिरमौर चौराहा से करीब 2 किलोमीटर दूर अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय क्रिकेट स्टेडियम के ठीक सामने इस कोर्ट को बनाया गया है। करीब कोरोना काल से इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया था। जो पिछले साल बनकर तैयार हुआ है। डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला के द्वारा इसका निरीक्षण किया गया है।