रीवा राजघराने की ऐतिहासिक होली: इस अजेय विरासत की एक सांस्कृतिक धरोहर
रीवा राजघराने की यह अनोखी होली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जो आज भी पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को जीवित रखे हुए है।

Rewa News: होली भारत में प्राचीन काल से उल्लास और उमंग के साथ मनाई जाती रही है। हालांकि, देश के अलग-अलग क्षेत्रों में इसे मनाने के तरीके भिन्न होते हैं, लेकिन हर जगह इसकी पारंपरिक और सांस्कृतिक झलक बनी रहती है। ऐसी ही एक ऐतिहासिक और विशिष्ट होली रीवा राजघराने में मनाई जाती है, जो अपने खास रीति-रिवाजों और भव्य आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है।
रीवा राजघराने की होली ब्रज से प्रेरित परंपरा
रीवा राजघराने की होली का महोत्सव ब्रज के फाग उत्सव की तरह पांच से सात दिनों तक चलता है। कहा जाता है कि रीवा के बघेल राजवंश के महाराजाओं और रानियों की भगवान कृष्ण में गहरी आस्था थी। करीब 300 साल पहले, महाराजा भाव सिंह सुदेव ने भगवान जगन्नाथ के भव्य मंदिरों की स्थापना की, जिससे होली मनाने की एक नई परंपरा शुरू हुई।
जगन्नाथ मंदिर और होली उत्सव
महाराजा भाव सिंह जूदेव ने तीन प्रमुख स्थानों—किला परिसर, बिछिया और मुकुंदपुर—में भगवान जगन्नाथ के मंदिर स्थापित करवाए। होली के दिन सबसे पहले किला परिसर स्थित जगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजा होती थी, इसके बाद सैनिकों द्वारा भगवान को तोपों की सलामी दी जाती थी। फिर भगवान को अटीका प्रसाद का भोग अर्पित किया जाता था, जिसे बाद में राजपरिवार के सदस्य भक्तों में वितरित करते थे। यह परंपरा आज भी कायम है।
संगीत, नृत्य और होली की धूम
समय के साथ रीवा राजघराने में होली का महत्व और बढ़ता गया। महाराजा भाव सिंह के बाद उनके पुत्र अनुरूप और फिर जय सिंह जूदेव ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। विशेष रूप से महाराजा विश्वनाथ सिंह जूदेव का काल इस उत्सव के लिए ऐतिहासिक माना जाता है। उन्होंने खुद मृदंग की रचना की और मृदंग वादन में निपुणता हासिल की।
उनके शासनकाल में किला परिसर में होली महोत्सव की भव्य तैयारियां होती थीं। पलाश के फूलों से बनाए गए रंग और गुलाल से होली खेली जाती थी। दूर-दूर के गांवों से फाग मंडलियां रीवा दरबार आती थीं और महाराज स्वयं मृदंग बजाकर संगीत का रस घोलते थे।
आज भी जीवंत है यह परंपरा
इतिहासकारों के अनुसार, रीवा राजघराने की होली ब्रज की होली की तरह भव्य और हर्षोल्लास से भरपूर होती थी। आज भी किला परिसर में विशेष पूजा-अर्चना होती है, बंदूकों से सलामी दी जाती है, और अटीका प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाता है।
रीवा राजघराने की यह अनोखी होली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जो आज भी पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को जीवित रखे हुए है।