रीवा में सरकार का दोहरा चरित्र प्रशासन की नाकामी ने तोड़ दिए गरीबों के 23 मकान, 18 वर्षीय युवती को तहसीलदार ने कैरियर बर्बाद करने की दी धमकी
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक मकान तोड़ने से पहले जिला प्रशासन के द्वारा उनके विस्थापन की कोई अन्य व्यवस्था नहीं की गई लिहाजा परिवार छोटे-छोटे मासूम बच्चों को लेकर मलबे के ढेर के बीच तंबू लगाकर रह रहे हैं। पीड़ितों का आरोप है कि पंचायत में सरकारी जमीन पर पीएम आवास की स्वीकृति …

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक मकान तोड़ने से पहले जिला प्रशासन के द्वारा उनके विस्थापन की कोई अन्य व्यवस्था नहीं की गई लिहाजा परिवार छोटे-छोटे मासूम बच्चों को लेकर मलबे के ढेर के बीच तंबू लगाकर रह रहे हैं। पीड़ितों का आरोप है कि पंचायत में सरकारी जमीन पर पीएम आवास की स्वीकृति दी थी तब अतिक्रमण बनाकर तोड़ दिया गया था।
आपको बता दें कि एक व्यक्ति को केवल एक ही बार पीएम आवास योजना के लिए पात्र माना जाता है। अब जिनके घर तोड़ दिए गए हैं उन लोगों का कहना है कि अगर यह अतिक्रमण था तो हमारे पीएम आवास की राशि क्यों खर्च करवा दी।
पंचायत ने हमें इस जमीन पर आवास बनाने की स्वीकृति कैसे दी हमें तो यह भी कहा गया था कि जिस स्थान पर पीढियां से बसे है। उस उसी जगह पर आवास और जमीन का पट्टा दिए जाने का प्रावधान है।
तंबियो में गुजर रहीं रातें, वादे का क्या हुआ?
पीड़िता फूलमती केवट के द्वारा बताया गया कि हमने बड़ी उम्मीद के साथ अपने घर बनवाए थे। हमारी पिछली तीन पीढियां इसी स्थान पर कच्चे मकान में रहा करती थी। पीएम आवास योजना की सहायता मिली तो ऐसा लगा कि सपनों को पंख लग गए हैं, लेकिन हमारे घर गिरा दिए गए अब हम तंबू में रह रहे हैं।
महीने भर के भीतर व्यवस्था बनाने का वादा किया गया। अब हम पूछना चाहते हैं कि आखिरकार उस वादे का क्या हुआ। कहां गया था की जमीन चिन्हित की गई है उस जगह पर हमें पट्टे दिए जाएंगे जिसके बाद पीएम आवास तोड़ दिए गए हैं उन्हें आवास दिए जाएंगे लेकिन सारे वादे धरे के धरे रह गए
ठंड में बच्चे बीमार, कहां से मिले रोज पैसे
संगीता केवट के द्वारा बताया गया कि बच्चे तंबू में रह रहे हैं एक बच्चे की उम्र दो साल है तो एक की 5 साल हम तो किसी कदर ठंड बर्दाश्त कर रहे हैं। पर बच्चे ठंड सहन नहीं कर पा रहे डॉक्टर को दिखाने के लिए बार-बार रीवा शहर जाना पड़ रहा है। रीवा की यहां से दूरी लगभग 35 किलोमीटर है ऐसे में आने जाने के लिए बार-बार ऑटो का किराया देना पड़ता है।
डॉक्टर को भी रोजाना फीस देनी पड़ रही है हम रोज कमाने और खाने वाले लोग हैं घर गिरने के बाद खाने के लाले पड़े हैं ऐसे में हम डॉक्टरों की फीस कहां से दे पाएंगे बार-बार बच्चे बीमार पड़ रहे हैं अगर उन्हें कुछ हो जाता है तो उसका जवाब कौन देगा।
घर बनवाने के लिए 50 हजार कर्ज लिया
एक पिता ने बताया कि जिस तरह से हमारे घर गिरा दिए गए हैं उसके बाद कोई व्यवस्था नहीं की गई हम पर बड़ा कर्ज है पीएम आवास योजना से हमें डेढ़ लाख रुपये मिलने चाहिए थे लेकिन वह केवल 1,20000 रुपए ही मिले ₹30000 कौन खा गया इसका कोई पता पता नहीं। घर बनवाने के लिए मै ₹50000 का कर्ज लिया उस कर्ज के बदले हमें 7% ब्याज देना पड़ रहा है वह कर्ज अभी तक हम नहीं दे पाए हैं
लोगों ने बताया कि रोजमर्रा की गृहस्थी में न जाने कितने खर्च होते हैं। पर हमारे पास कुछ भी नहीं है बस एक वक्त का खाना मिल जाए वही बहुत बड़ी चीज है तंबू लगाकर इतना बड़ा जीवन कैसे बीत जाएगा कुछ समझ में नहीं आ रहा हर महीने कर्ज चुकाने की चिंता सताती है जब तक पक्का घर था तो किसी तरह कर्ज चुका रहे थे लेकिन जिस घर के लिए कर्ज लिया था अब वह नहीं रहा लेकिन हमें कर्जदार परेशान करते हैं।
AC घरों में रहने वाले क्या जानेंगे हमारा दर्द
मोलई केवट ने कहा कि ऐसी घरों में रहने वाले लोग हमारे दुख दर्द को क्या समझेंगे रोज मजदूरी करते हैं तब जाकर घर का चूल्हा जलता है। अगर दो दिन घर बैठ जाए तो बीवी बच्चे बिना भोजन मर जाएंगे हम गरीब हैं। लेकिन हम कोई अपराधी नहीं हमने ऐसा कोई अपराध नहीं किया है जिसकी सजा हमें दी जा रही है।
हमारे पूर्वज जिस स्थान पर रहते थे हम भी वहां रह रहे हैं हमने कोई देशद्रोही नहीं किया है। ना ही हमने कोई हत्या और चोरी डकैती की है ,लेकिन ऐसा लग रहा है कि हमने कोई बहुत बड़ा अपराध किया है क्योंकि हमारे साथ इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है।
2 महीने पहले पिता की मौत, तहसीलदार ने दी धमकी
पीड़िता रेशमा केवट जो 18 वर्ष की है उसका कहना है कि दो माह पहले पिता का निधन हो गया मां और भाई के साथ रहती हूं मौके पर तहसीलदार पहुंचे थे मैं पूरे घटनाक्रम का वीडियो बना रही थी तहसीलदार ने मुझे धमकाया और कहा अगर तुमने वीडियो बनाया तो तुम्हारा पूरा भविष्य बर्बाद कर दूंगा जीवन में फिर कहीं नौकरी नहीं मिलेगी। पूरा जीवन अब तंबू में कट रहा है