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Mp news: रीवा कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: फर्जी गैंगरेप-पॉक्सो मामले में 3 पत्रकार बाइज्जत बरी, पुलिस की मनमानी को करारा जवाब

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Mp news: रीवा की धरती पर आज न्याय का एक नया अध्याय लिखा गया। सिविल लाइन थाना क्षेत्र में 23 मई 2022 को दर्ज किए गए एक फर्जी गैंगरेप और पॉक्सो (POCSO) मामले में, रीवा न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जिले के तीन निर्भीक पत्रकारों – अमर मिश्रा, प्रद्युम्न शुक्ला, और उमेश सिंह को सभी आरोपों से पूरी तरह दोषमुक्त कर दिया। यह फैसला न केवल इन पत्रकारों के लिए एक बड़ी राहत है, बल्कि पुलिस-प्रशासन की मनमानी और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई पर भी एक करारा तमाचा है।

आइए जानते है क्या था मामला

यह मामला तब शुरू हुआ जब 21 मार्च 2022 को रीवा के पत्रकारों ने सिविल लाइन थाना क्षेत्र में हुई एक मारपीट की घटना को अपने समाचार पत्रों व सोशल मीडिया  में प्रकाशित किया। इसी बात की रंजिश रखते हुए, महिला  ने इन पत्रकारों के खिलाफ सिविल लाइन थाने में एक मनगढ़ंत घटना के आधार पर फर्जी एफआईआर दर्ज करा दी। अपराध क्रमांक 258/22, धारा 376 (2) (n), 450, 506 भा.दा.वी. के तहत दर्ज किए गए ये आरोप इतने गंभीर थे कि किसी भी व्यक्ति का जीवन तबाह करने के लिए काफी थे।

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तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन और थाना प्रभारी हितेंद्र नाथ शर्मा की भूमिका पर सवाल,

यह मामला उस समय रीवा जिले में चर्चा का विषय बन गया था, जब तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन और सिविल लाइन थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी हितेंद्र नाथ शर्मा के कार्यकाल में यह चौंकाने वाला फर्जी मुकदमा दर्ज किया गया। पुलिस प्रशासन द्वारा पॉक्सो जैसे संवेदनशील कानून का दुरुपयोग कर, इन पत्रकारों को फंसाने का यह प्रयास पुलिस की कार्यप्रणाली और उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

न्यायपालिका पर अटूट विश्वास और सत्य की विजय

रीवा जिले के इन पत्रकारों ने  हार नहीं मानी। उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया पर पूर्ण विश्वास रखा और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए हर संभव प्रयास किया। न्यायालय में चली लंबी सुनवाई के दौरान, पुलिस द्वारा गढ़े गए झूठ की परतें एक-एक करके खुलने लगीं। सबूतों के अभाव और पुलिस की जांच में गंभीर खामियों ने यह साबित कर दिया कि यह मामला सुनियोजित तरीके से इन पत्रकारों को फंसाने के लिए तैयार किया गया था

आखिरकार, माननीय न्यायालय ने सभी तथ्यों और साक्ष्यों पर गहन विचार करने के बाद, तीनों पत्रकारों को दोषमुक्त करार दिया। इस फर्जी मामले में फंसे तीनों पत्रकारों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेंद्र नाथ चतुर्वेदी, आनंद सिंह, अर्पित पांडेय और उनकी जूनियर टीम ने दमदार पैरवी की, जिन्होंने सत्य की इस लड़ाई में तीनों पत्रकारों को विजय दिलाई।

यह फैसला दर्शाता है कि भले ही सत्ता कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, न्याय की डगर पर सत्य की ही जीत होती है। यह उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर निर्दोषों को फंसाने का प्रयास करते हैं। अमर मिश्रा (हरित प्रवाह समाचार पत्र, संपादक), प्रद्युम्न शुक्ला और उमेश सिंह ने इस कठिन दौर में जिस धैर्य और साहस का परिचय दिया, वह वास्तव में प्रेरणादायक है।

रीवा के न्यायिक इतिहास में मील का पत्थर

रीवा कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल इन तीन पत्रकारों की बेगुनाही का प्रमाण है, बल्कि यह रीवा जिले के न्यायिक इतिहास में एक मील का पत्थर भी है। यह फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि न्यायपालिका आज भी आम आदमी के लिए आशा की किरण है और मीडिया की स्वतंत्रता पर हुए इस हमले को उसने विफल कर दिया। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में पुलिस प्रशासन ऐसी दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई से बचेगा और कानून का सम्मान करेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेंद्र नाथ चतुर्वेदी ने इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह न्याय और सत्य की जीत है।

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