Rewa Airport: रीवा एयरपोर्ट का नाम बदलने की तैयारी, शुरू इस सियासत का क्या होगा अंजाम

Rewa Airport: रीवा एयरपोर्ट लोकार्पण से पहले नामकरण को लेकर सियासत गर्म हो गई है,बसपा नेता देवेंद्र सिंह ने कसा तंज।

Rewa Airport रीवा जिले में नवनिर्मित एयरपोर्ट के लोकार्पण से पहले ही इसके नामकरण को लेकर नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया देना शुरू कर दी है। अगस्त के महीने से ही रीवा में नवनिर्मित एयरपोर्ट का लोकार्पण वर्चुअल देश के प्रधानमंत्री मोदी करेंगे। हालांकि लोकार्पण की तिथि अभी तक नहीं है लेकिन लोकार्पण से पहले ही एयरपोर्ट के नामकरण को लेकर रीवा में सियासत हो रही है।

व्हाइट टाइगर सफारी के नाम का भी हुआ था विरोध

विश्व प्रसिद्ध मुकुंदपुर में बने व्हाइट टाइगर सफारी के लोकर्पण पर भी उसके नामकरण को लेकर काफी विरोध हुआ था। इसके बाद उसका नाम बदलकर महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव व्हाइट टाइगर सफारी एंड जू किया गया बसपा नेता का कहना है कि “महाराजा मार्तण्ड ने ही पहले सफेद शेर को पकड़ा था, जिसका नाम मोहन रखा गया।

इसके बाद उसकी ब्रीडिंग कराई गई और आज दुनिया भर में जितने भी सफेद शेर मौजूद हैं। वह उसी सफेद शेर मोहन के वंशज है, जिससे स्वाभाविक था कि टाइगर सफारी महाराजा मार्तण्ड सिंह के नाम से जाना जाए।

एयरपोर्ट लोकार्पण को लेकर सियासत

प्रेस कांफ्रेंस के दौरान बसपा नेता देवेंद्र सिंह ने नवनिर्मित रीवा एयरपोर्ट कि लोकार्पण को लेकर सरकार पर तंज कसा है उन्होंने कहा कि रीवा में हवाई चप्पल पहनने वाली जनता को हवाई जहाज की सुविधा मिलने वाली है पिछले 1 साल से एयरपोर्ट के उद्घाटन की अटकलें चल रही थी।

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लेकिन अब तक उसका लोकार्पण नहीं किया गया।उन्होंने कहा इसी अगस्त के महीने में लोकार्पण किया जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन उससे पहले ही नवनिर्मित एयरपोर्ट की बाउंड्री वॉल धराशाई हो गई थी, जिससे भ्रष्ट्राचार भी होने की आशंका है।

एयरपोर्ट का नाम बदलने के उठी मांग

बीएसपी नेता देवेंद्र सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से रीवा में नवनिर्मित एयरपोर्ट के नामकरण को लेकर अपना मत रखा है उनका कहना है कि एयरपोर्ट रीवा रियासत की आखिरी राजा रहे स्वर्गीय महाराजा मार्तंड सिंह जूदेव के नाम पर रखा जाना चाहिए।

उन्होंने विश्व को सफेद शेर की सौगात दी या फिर एयरपोर्ट का नाम नेत्रहीन सांसद व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यमुना प्रसाद शास्त्री के नाम पर होना चाहिए, जिन्होंने गोवा मुक्ति आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए दोनों आंखे गंवाने के बाद दो बार रीवा के सांसद बने और जनता की सेवा की।

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