PM मोदी ने की चेतावनी,PAK कुछ करेगा तो मिट्टी में मिला देंगे
भारत और पाकिस्तान के बीच पहलगाम हमले के बाद बढ़ा तनाव, लेकिन सैन्य अधिकारियों की बातचीत से संघर्षविराम पर सहमति बनी—शांति की उम्मीद फिर से जागी।

भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में एक बार फिर गहराता तनाव वैश्विक चिंता का विषय बन गया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के समक्ष स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान की किसी भी उकसावे वाली कार्रवाई का जवाब अब पहले से अधिक तेज, सख्त और निर्णायक होगा। यह बयान उस समय आया जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए बड़े आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया था। संयोग से उसी दौरान अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत की यात्रा पर थे।
मोदी की चेतावनी के कुछ ही दिनों बाद पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ 26 अलग-अलग स्थानों पर हमले किए गए, जिसके जवाब में भारत ने भी सख्त सैन्य कार्रवाई की। इन घटनाओं ने दक्षिण एशिया में युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने भी इस तनाव को अत्यधिक गंभीर बताया और आगाह किया कि यदि हालात नहीं संभाले गए, तो यह टकराव किसी भी क्षण पूर्ण युद्ध में बदल सकता है।
हालांकि शुरुआत में अमेरिका ने इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी, लेकिन जैसे-जैसे तनाव बढ़ा, वाशिंगटन ने सक्रिय कूटनीतिक भूमिका निभाई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान तत्काल प्रभाव से संघर्षविराम पर सहमत हो गए हैं। उन्होंने इस समझौते का श्रेय अमेरिका की मध्यस्थता को दिया। विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इसे अमेरिका की कूटनीतिक सफलता बताते हुए दोनों देशों के नेताओं की परिपक्वता की सराहना की।
लेकिन भारत सरकार के वरिष्ठ सूत्रों के अनुसार, संघर्षविराम किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से नहीं बल्कि दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों—डीजीएमओ—के बीच हुई प्रत्यक्ष बातचीत से संभव हुआ। फोन पर हुई इस बातचीत में दोनों पक्षों ने फौरन गोलीबारी रोकने पर सहमति जताई।
इस बीच पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसहाक डार ने भी इस समझौते की पुष्टि करते हुए सोशल मीडिया पर कहा कि पाकिस्तान हमेशा क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा का समर्थक रहा है, बशर्ते उसकी संप्रभुता बनी रहे।
सीमा पर भले ही तनाव की स्थिति अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है, लेकिन संघर्षविराम की घोषणा एक सकारात्मक पहल मानी जा रही है। यह देखना अब बाकी है कि दोनों देश इस बार शांति को कितने लंबे समय तक कायम रख पाते हैं। इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ है कि युद्ध किसी भी मसले का हल नहीं, बल्कि संवाद और सूझबूझ ही स्थायी समाधान की ओर पहला कदम है।