MP News: MP के इस जिले के किसान कर रहे स्ट्रॉबेरी की खेती, 300 रुपए किलो बिकने वाले इस फल से कमा रहे लाखों
MP News: मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में जब पारंपरिक खेती से आगे बढ़ाने की बात आई तो जनजाति किसानों ने एक नई दिशा की तरफ अपना कदम रखा। जिले के प्रगतिशील किसान रमेश परिहार और उनके साथी अन्य किसानों ने हिम्मत और मेहनत से असंभव को संभव बना दिया और आज हर महीने लाखों …

MP News: मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में जब पारंपरिक खेती से आगे बढ़ाने की बात आई तो जनजाति किसानों ने एक नई दिशा की तरफ अपना कदम रखा। जिले के प्रगतिशील किसान रमेश परिहार और उनके साथी अन्य किसानों ने हिम्मत और मेहनत से असंभव को संभव बना दिया और आज हर महीने लाखों रुपए की आमदनी कर रहे हैं।
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पारम्परिक खेती से उद्यानिकी की ओर
झाबुआ जिले के जनजाति बहुल क्षेत्र में पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग शुरू किया गया। परंपरागत रूप से मक्का ,ज्वार और अन्य सामान्य फसलों के लिए जाने जाने वाले इस क्षेत्र में अब किसानों ने उद्यानिकी फसलों की तरफ अपना रुख किया है। जिले के राम ब्लॉक के तीन ग्रामों में भुराडाबरा, पालेड़ी और भंवरपिपलिया आठ किसानों के खेतों में स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए गए हैं
झाबुआ जिले में स्ट्रॉबेरी सामान्यतः ठंड क्षेत्र की फसल है यहां अनुकूलित परिस्थितियों में उगाने का प्रयोग किया गया महाराष्ट्र के सतारा जिले से करीब 5000 पौधे मंगवा कर हर किसान खेत में 500 से 1000 पौधे लगाए हैं। हर पौधों की कीमत ₹7 थी लेकिन इसे उगाने की प्रक्रिया ने किसानों को बागवानी की उन्नति एवं आधुनिक तकनीक से रूबरू कराया है।
रोटला ग्राम के रमेश परमार ने अपने खेत में ड्रीम और मल्चिंग तकनीकी का इस्तेमाल कर 1000 स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए उन्होंने बताया कि वह पहले बाजार में इन फलों को देखा था, लेकिन खरीदने की हिम्मत नहीं थी जब खुद के खेत में उगे तो इसका स्वाद भी चखा इसकी उच्च कीमत का महत्व भी समझा।
रमेश ने 8 अक्टूबर 2024 को पौधों की बुवाई की थी और केवल 3 महीना में फलों की पैदावार शुरू हो गई वर्तमान में बाजार में स्ट्रॉबेरी की कीमत ₹300 प्रति किलो है फिलहाल उन्होंने अपनी पहली फसल घर के सदस्यों और रिश्तेदारों के साथ बांटी

समूह की सफलता
रमेश इस अभियान में अकेले नहीं है उनके साथ अन्य किसान भंवरपिपलिया के लक्ष्मण, भुराडाबरा के दीवान और पालड़ी के हरिराम ने भी अपनी जमीन पर स्ट्रॉबेरी उगाई सभी किसानों के पौधों में फल लगने शुरू हो गए यह किसान अपनी उपज को लोकल बाजारों एवं हाईवे के किनारे बेचने की योजना बना रहे हैं।
झाबुआ जिले की यह पहल न केवल कृषि नवाचार का एक बेहतरीन उदाहरण है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक ठोस कदम भी है। झाबुआ जिले के आदिवासी किसानों ने यह साबित कर दिया है कि सही मार्गदर्शन, तकनीक और कड़ी मेहनत से किसी भी क्षेत्र में अपार संभावनाएं पैदा की जा सकती हैं।
आर्थिक और सामाजिक बदलाव की ओर बढ़ रहे आदिवासी किसान
स्ट्रॉबेरी की खेती से न केवल इन किसानों की आय में वृद्धि होने की उम्मीद है, बल्कि यह दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनेगी। यह पहल झाबुआ जिले के लिए बागवानी खेती का एक नया अध्याय खोलेगी। झाबुआ के आदिवासी किसान सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े बदलाव की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।