जानें कैसे हुई थी भोलेबाबा की उत्पत्ति क्या उन्होंने ने लिया था जन्म,क्या? है इसके पीछे की पौराणिक कथा
भगवान शिव की उत्पत्ति रहस्य, कथाएँ और मान्यताएँ क्या भोलेबाबा ने जन्म लिया था या ब्रह्मदेव के गुस्से ने की थी उत्पति।
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Maha shivratri 2025: भगवान शिव, जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर और रुद्र के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि, विनाश और पुनर्जन्म के प्रतीक माने जाते हैं। उनकी उत्पत्ति को लेकर विभिन्न ग्रंथों और पुराणों में कई अद्भुत कथाएँ वर्णित हैं।
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शिव की अनादि स्वरूपता
सनातन धर्म में भगवान शिव को अनादि और अनंत माना गया है। इसका अर्थ है कि उनकी कोई उत्पत्ति नहीं हुई, वे सदा से ही विद्यमान हैं। शिव स्वयं में एक चेतन शक्ति हैं, जो न तो जन्म लेते हैं और न ही उनका कोई अंत होता है।
शिव पुराण में वर्णित कथा
शिव पुराण में वर्णन आता है कि ब्रह्मा और विष्णु के बीच सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ होने को लेकर विवाद हुआ। तभी वहां एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ, जिसका कोई आदि या अंत नहीं था। ब्रह्मा और विष्णु ने उस ज्योति का छोर खोजने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे। तभी उस ज्योति से भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि वे ही परम शक्ति हैं और इस सृष्टि का संचालन उनके ही द्वारा होता है।
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शिव का जन्म ब्रह्मा के क्रोध से
एक अन्य कथा के अनुसार, सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी ने चार कुमारों – सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार – की रचना की, लेकिन वे संसारिक जीवन में रुचि न लेते हुए तपस्या में लीन हो गए। इससे ब्रह्मा को क्रोध आया, और उनके क्रोध से एक अत्यंत विकराल और प्रचंड रूप धारण करने वाली शक्ति उत्पन्न हुई। यही शक्ति आगे चलकर भगवान रुद्र या शिव के रूप में विख्यात हुई।
शिव तत्त्व: शक्ति और शिव का मिलन
तंत्र शास्त्र और अन्य ग्रंथों में शिव को आदि पुरुष और आदि शक्ति को प्रकृति का मूल तत्व माना गया है। शिव और शक्ति के मिलन से ही सृष्टि का आरंभ हुआ। माता पार्वती को शिव की अर्धांगिनी कहा जाता है, जो इस ब्रह्मांड की ऊर्जा और शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
शिव का निराकार और साकार स्वरूप
भगवान शिव को निराकार ब्रह्म और साकार रूप दोनों में पूजा जाता है। उनका निराकार रूप लिंग के रूप में प्रतिष्ठित है, जिसे शिवलिंग कहा जाता है। वहीं, उनके साकार रूप में उन्हें जटा-जूटधारी, गले में सर्प और हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए देखा जाता है।
भगवान शिव की उत्पत्ति रहस्यमयी और आध्यात्मिकता से भरपूर है। वे सृष्टि के पालनकर्ता, संहारकर्ता और पुनर्जन्म के कारक हैं। शिव का स्वरूप अनादि और अविनाशी है, जो हमें यह संदेश देता है कि ब्रह्मांड में परिवर्तन ही शाश्वत सत्य है। उनकी उपासना से भक्तों को मोक्ष और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव की महिमा अपरंपार है, और उनके जन्म का रहस्य एक आध्यात्मिक संदेश लिए हुए है कि वे आदि और अनंत हैं।