मध्य प्रदेश के इस जिले में अजीबोगरीब दीवाले मनाने का तरीका, घरों की नहीं होती पुताई गांव की कहानी जान रोगटे हो जायेंगे खड़े - MP News
MP News: मध्य प्रदेश के रतलाम में एक अजीबोगरीब गांव है, जहां दिवाली पर घरों की पुताई करना मना है। सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन ये सच है। इस गांव के लोग अंधविश्वास क्यों मानते हैं? देखिए इस पोस्ट में। दिवाली नजदीक है। लोग अपने घरों की पुताई कर रहे हैं। घर …

MP News: मध्य प्रदेश के रतलाम में एक अजीबोगरीब गांव है, जहां दिवाली पर घरों की पुताई करना मना है। सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन ये सच है। इस गांव के लोग अंधविश्वास क्यों मानते हैं? देखिए इस पोस्ट में। दिवाली नजदीक है। लोग अपने घरों की पुताई कर रहे हैं। घर को सजाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इन सबके बीच आइए आपको रतलाम जिले के एक अजीबोगरीब गांव की अजीबोगरीब कहानी बताते हैं।
जी हां, रतलाम जिले का कछालिया गांव। यहां की मान्यताओं की कहानी जितनी अजीब है, उतनी ही अद्भुद भी है। इसे अंधविश्वासी गांव कहें या शापित गांव, लेकिन यहां का काला सच चौंकाने वाला है। आप तस्वीरों में देख सकते हैं कि गांव के घरों की पुताई नहीं होती है। क्या है अंधविश्वास की कहानी? आइए आपको बताते हैं अंधविश्वास की कहानी में फंसे इस गांव की हकीकत। कछारिया में लोग अपने घरों की पुताई नहीं करते हैं। गांव के लोग दिवाली पर रंगोली भी नहीं सजाते लोग शराब भी नहीं पीते

गांव में काले रंग का इस्तेमाल वर्जित है लोग काले जूते, मोजे और कपड़े भी नहीं पहनते कालेश्वर मंदिर के सामने कोई दूल्हा घोड़े पर नहीं बैठता है।मंदिर के सामने कोई शवयात्रा नहीं निकलती गांव में 1400 से ज़्यादा लोग 200 से ज़्यादा घर कालेश्वर मंदिर के सम्मान में यहाँ के लोग सदियों से इन अंधविश्वासों को डर के साथ मानते आ रहे हैं
गांव वालो से सवाल किया गया यह परंपरा कब से चली आ रही है? वे काले जूते, कपड़े, मोजे आदि नहीं पहनते हैं। अगर पहन लेते हैं, तो उन्हें कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ता। अगर रंगा हुआ नहीं है, तो उन्हें कष्ट उठाना पड़ता है। अगर रंगा हुआ है, तो उन्हें कष्ट हो सकता है। अगर उनका बेटा मर जाए या परिवार में कोई मर जाए, तो उन्हें कुछ भी हो सकता है। यह टूट सकता है। यह बहुत पुराना स्थान है। हमारे गांव में तीन पीढ़ियां पली-बढ़ी हैं। उनके आशीर्वाद से उनके गांव में सब कुछ चल रहा है। आज तक किसी ने उनकी परंपरा का उल्लंघन नहीं किया है। और जिन्होंने किया है, उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ है।
अगर घर में कोई नुकसान होता है या परिवार में किसी को तकलीफ होती है, तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए कोई भी इस परंपरा का उल्लंघन नहीं करता है। गांव के लोग डर के मारे अंधविश्वास के साये में सांस ले रहे हैं। मंदिर के पुजारी भी ग्रामीणों के अंधविश्वास पर अपनी मुहर लगा रहे हैं। अगर आप इन्हें पहनेंगे तो मधुमक्खी आकर आपको काट लेगी और आप बीमार हो जाएंगे।
जो भी व्यक्ति घोड़े पर सवार होकर निकलता है, वह गांव पार नहीं कर पाता और बेहोश हो जाता है। लोग डर और अनहोनी की आशंका से घिरे हुए हैं। वे यह सब कालेश्वर भैरव के सम्मान में कर रहे हैं। ये बातें भले ही किसी पुरानी फिल्म की कहानी लगें, लेकिन रतलाम जिले का कछार गांव आज भी इन रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन कर रहा है।