"कोहिनूर" की अनकही कहानी भारत से ब्रिटिश ताज तक का सफ़र,कहां पहली बार मिला था यह अनमोल हीरा
Kohinoor Daimond: हीरों की दुनिया में अगर किसी एक नाम ने सदियों से राज किया है, तो वह है कोहिनूर। यह कोई साधारण रत्न नहीं, बल्कि एक ऐसी विरासत है, जिसने कई शासकों के सिंहासनों को चमकाया और कई राजघरानों की तकदीर बदल दी। इसकी कहानी जितनी चमकदार है, उतनी ही रहस्यमयी भी। भारत से …

Kohinoor Daimond: हीरों की दुनिया में अगर किसी एक नाम ने सदियों से राज किया है, तो वह है कोहिनूर। यह कोई साधारण रत्न नहीं, बल्कि एक ऐसी विरासत है, जिसने कई शासकों के सिंहासनों को चमकाया और कई राजघरानों की तकदीर बदल दी। इसकी कहानी जितनी चमकदार है, उतनी ही रहस्यमयी भी।
भारत से दुनिया तक कोहिनूर की यात्रा
कोहिनूर का इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है। यह हीरा सबसे पहले भारत में आंध्र प्रदेश की गोलकुंडा की खदानों में मिला था। कहा जाता है कि इसे काकतीय वंश के शासकों ने अपने खजाने में शामिल किया। उनकी सत्ता कमजोर पड़ने पर दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने इसे जब्त कर लिया। इसके बाद यह कई राजाओं के हाथों से गुजरता हुआ मुगलों के खजाने में पहुंचा।
मुगल सल्तनत में कोहिनूर
मुगल सम्राट बाबर के समय से लेकर शाहजहाँ तक यह हीरा उनकी शान बना रहा। शाहजहाँ ने इसे अपने पीकॉक थ्रोन (मयूर सिंहासन) में जड़वाया, जिससे इसकी भव्यता और भी बढ़ गई। लेकिन कोहिनूर सिर्फ समृद्धि का प्रतीक नहीं था, इसे अक्सर एक शापित हीरा भी माना जाता था। कहा जाता है कि जिस राजा के पास यह रहा, उसकी सत्ता कुछ समय बाद कमजोर पड़ गई।
औरंगजेब ने इसे और अधिक चमकाने के लिए एक प्रसिद्ध जौहरी से कटवाया, लेकिन दुर्भाग्य से हीरे का वजन 793 कैरेट से घटकर 186 कैरेट रह गया। मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ा और कोहिनूर पर दूसरे आक्रमणकारियों की नजरें टिक गईं।
कोहिनूर का अफगानिस्तान और पंजाब सफर
1739 में ईरान के शासक नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया और मुगलों का खजाना लूट लिया। कोहिनूर भी उनके हाथ लग गया। कहते हैं कि जब पहली बार उन्होंने इसे देखा तो आश्चर्यचकित रह गए और बोले "कोहिनूर!", जिसका अर्थ है "रोशनी का पर्वत"। यहीं से यह नाम प्रसिद्ध हुआ।
नादिर शाह की मृत्यु के बाद कोहिनूर अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के पास चला गया। आगे चलकर यह अफगानिस्तान से महाराजा रणजीत सिंह के हाथों में आया। यह वह दौर था जब अंग्रेज धीरे-धीरे भारत पर कब्जा जमा रहे थे।
ब्रिटिश क्राउन तक कोहिनूर की यात्रा
1849 में अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा कर लिया और कोहिनूर को ब्रिटिश हुकूमत के अधीन कर दिया। इसे महारानी विक्टोरिया को "उपहार" के रूप में प्रस्तुत किया गया। हालांकि, यह स्पष्ट है कि यह उपहार नहीं, बल्कि जबरन लिया गया खजाना था।
ब्रिटेन पहुंचने के बाद कोहिनूर को दोबारा तराशा गया, जिससे इसका वजन और घटकर 105.6 कैरेट रह गया। आज यह ब्रिटिश क्राउन के शाही गहनों का हिस्सा है और लंदन के टॉवर में संग्रहित है।
क्या कोहिनूर भारत लौटेगा?
भारत कई बार कोहिनूर की वापसी की मांग कर चुका है, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसे वापस देने से इनकार करती रही है। यह हीरा केवल एक बहुमूल्य पत्थर नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है।