रीवा में सीखी कुश्ती की कला दुनिया भर में बजाया डंका, रुस्तम-ए-हिंद गामा पहलवान की सफलता कहानी
दुनिया के जाने-माने पहलवान गामा का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। क्योंकि गामा पहलवान दुनिया के ऐसे पहलवान थे जिन्हें आज तक कोई पट्ट नहीं कर सका
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कुश्ती की दुनिया में जब भी किसी को याद किया जाता है तो वह गामा है। बड़े अदब और सम्मान के साथ इस पहलवान का नाम लिया जाता है। वह एक ऐसे पहलवान थे जिन्होंने कभी कोई कुश्ती नहीं हारी ,लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि रुस्तम में हिंद का नाता मध्य प्रदेश के रीवा से रहा। लेकिन आपको बता दें रीवा अखाड़ा घाट में गामा पहलवान ने कुश्ती के दाव पेंच सीख कर लंदन में अपना डंका बजाया था और रीवा को एक अलग पहचान दी थी
विश्व प्रसिद्ध पहलवान गामा का जन्म 22 में 1878 ई. में मध्य प्रदेश के झांसी स्थित दतिया में हुआ था। गामा का असली नाम गुलाम हुसैन था। उनके पिता अजीज पहलवान दतिया महाराज के शाही पहलवान हुआ करते थे। जब गामा 4 साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया था।
मामा मीरा बक्श जो रीवा के थे उनके संरक्षण में गामा ने कुश्ती की शुरुआत की। खलीफा के तौर पर भाई माधव सिंह ने उन्हें दांव पेंच सिखाए। अपने कुश्ती जीवन की शुरुआती दौर में गामा ने उस दूर के नामी पहलवान रहीम सुल्तानी और यहुद्दीन के साथ दो दो हाथ किया और दोनों की कुश्ती बराबरी पर छुटी। साल 1890 में महाराज जोधपुर ने कुश्ती का एक मुकाबले आयोजित करवाया जिसमें 400 पहलवानों ने भाग लिया था। इसमें 12 साल के गामा को विजेता घोषित किया गया था।
पहली बार रीवा आए थे गामा
इसके बाद गामा पहलवान की लोकप्रिय दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी थी। रुस्तम ए हिंद होने के वजह से पूरे हिंदुस्तान में उनका नाम हो चुका था। गामा पहलवान के मामा रुस्तम-ए-हिंद मीरा बक्श पहले ही रीवा दरबार में शाही पहलवान थे वह अपने भांजे गामा को रीवा बुला लाए और रीवा नरेश महाराजा वेंकट रमन सिंह उनसे मिलकर बहुत खुश हुए
इस अखाड़े में गामा का हुआ था अभ्यास
मीरा बक्श एवं गामा के पहले महाराज वेंकटम रमन सिंह के पास जोधपुर से आए हुए सरदार सिंह नाम के पहलवान हुआ करते थे। उनके कुश्ती अभ्यास के लिए बड़ी दरगाह के पास अमहिया मोहल्ला में अखाड़ा करवाया गया था। वही सरदार सिंह अपने चेलों को दांव पेंच सिखाते थे। गामा पहलवान इस अखाड़े में कुश्ती के दाव पेंच शिष्यों को बताने लगे थे तथा स्वयं रियाज करने लगे थे। रीवा राजा महाराजा वेंकट रमन सिंह ने गामा को रोज की खुराक में 6 माह के एक बकरे का मांस चार बाल्टी दूध एक टोकरी फल 2 किलो घी पिस्ता बादाम की खुराक लगाई थी।
वही गामा अखाड़े में रखी 98 किलो वजन की पत्थर की चकरी में जंजीर बांधकर अपने गले में जंजीर फंसा कर सैकड़ो दंड बैठक लगाया करते थे। इसके अलावा 5000 बार दंड बैठक लगते थे। दंड बैठक के दौरान जमीन उनके पसीने से घुल जाती थी इसी दौरान गामा के शिष्य बाल्टी में रखे दूध को मग से पीने के लिए देते रहते थे।
विश्व चैम्पियनशिप के लिए गामा का चयन
साल 1910ई .में इंग्लैंड के लंदन शहर में कुश्ती की विश्व चैंपियनशिप का मुकाबला कराया जा रहा था. जिसके लिए हिंदुस्तान से गामा पहलवान को सेलेक्ट किया गया था। उस वक्त गामा रीवा महाराज के दरबार में थे। उधर ब्रिटिश भारतीय हुकूमत ने आने जाने वह उनका खर्च उठाने से मना कर दिया था। ऐसा लगने लगा था कि गामा उस मुकाबले में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। जब यह बात रीवा नरेश महाराजा वेंकट रमन सिंह को जानकारी हुई तो वह आगे आए और भारत के गवर्नर जनरल से सिफारिश की तथा आर्थिक सहयोगिता प्रदान किया तब गामा ने लंदन में भाग लेने के लिए पहुंचे।
लंदन पहुंचने पर भारतीय कुश्ती दल को उसे वक्त काफी बुरा लगा जब गामा को छोटे कद का कह कर उन्हें आयोग कर दिया गामा बेचैन होकर अपने मैनेजर की सहायता से इंग्लैंड के अखबारों में यह चुनौती प्रकाशित करवाई की दुनिया का कोई पहलवान उनके सामने अखाड़े में अगर 5 मिनट भी रुक जाता है तो उसे 5 पॉन्ड का नगद इनाम देंगे। गामा की चुनौती दंगल लंदन के एक थिएटर में दो दिनों तक चली जिसका लाभ गामा को मिला पहले दिन गामा ने तीन पहलवानों को और दूसरे दिन 12 पहलवानों को 5 मिनट से भी कम समय में पछाड़ दिया। इस सफलता का असर यह हुआ कि विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में आयोजकों को बाध्य होकर गम को मौका देना पड़ा।
गामा के प्रिय शिष्य
गामा पहलवान रीवा में रहकर 10-12 वर्ष के बच्चों को कुश्ती सिखाया करते थे। गामा के रीवा आगमन पर उस्ताद मुमताज खां बिछिया रीवा ने उनके द्वारा तैयार किए गए पट्टे 1934 में हरिहर प्रसाद पांडेय की बेहतरी के लिए गामा को सौंप दिए। उनके प्रिय शिष्यों में पं. रामभाऊ शुक्ला (बड़ी हरदी), हरिहर प्रसाद पांडेय (मकरवट), हनीफ खां (बिछिया रीवा) थे। इनमें रामभाऊ शुक्ला रीवा स्टेट चैंपियन, हरिहर पांडेय रीवा स्टेट चैंपियन के अलावा इलाहाबाद चैंपियन, बुंदेलखंड चैंपियन रहे। जबकि हनीफ खां 1935 में युवा वर्ग में रीवा स्टेट चैंपियन बने। हरिहर प्रसाद पांडेय गामा पहलवान के सबसे करीबी थे। गामा ने महाराजा गुलाब सिंह से हरिहर प्रसाद को यह कहकर अपने साथ ले जाने को कहा था कि वह एक वर्ष के अंदर हरिहर को रुस्तम-ए-हिंद बना देंगे लेकिन महाराजा गुलाब सिंह ने हरिहर प्रसाद को जाने नहीं दिया।