मूंग की खेती में ज़हर बन रही रसायन की लत, बिगड़ रही ज़मीन, सेहत और बाजार
मूंग की खेती में अत्यधिक रसायनों के उपयोग से मिट्टी, पानी और सेहत पर संकट गहराया; उपभोक्ता मूंग से कर रहे किनारा, टिकाऊ खेती की बढ़ी जरूरत।

मध्य प्रदेश के कई जिलों में मूंग की खेती अब स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी बनती जा रही है। जल्दी मुनाफा कमाने की होड़ में किसान मूंग की फसलों में भारी मात्रा में कीटनाशक और खरपतवार नाशक दवाओं का उपयोग कर रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, पैराक्वेट और ग्लाइफोसेट जैसे खतरनाक रसायनों का बेजा इस्तेमाल न केवल उपज की गुणवत्ता को बिगाड़ रहा है, बल्कि उपभोक्ताओं की सेहत और पर्यावरण पर भी बुरा असर डाल रहा है।
इन जहरीले रसायनों की वजह से मिट्टी की उर्वरता घट रही है, भूजल का स्तर तेजी से नीचे जा रहा है और हवा-पानी में विषैले तत्व बढ़ रहे हैं। खेतों में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीव खत्म हो रहे हैं, जिससे मिट्टी की प्राकृतिक क्षमता भी समाप्त हो रही है। यह एक गंभीर संकेत है कि खेती का भविष्य खतरे में है।
गर्मी के मौसम में मूंग की खेती के लिए बार-बार सिंचाई की जा रही है, जिससे बिजली की खपत भी बढ़ी है। यह स्थिति न केवल आर्थिक बोझ बढ़ा रही है, बल्कि आने वाले वर्षों में जल संकट को और भी भयावह बना सकती है।
इन सबके बीच उपभोक्ताओं का मूंग पर से भरोसा उठने लगा है। बाजार में अब ग्राहक मूंग की खरीद से पहले उसकी खेती और गुणवत्ता को लेकर सवाल पूछ रहे हैं। नतीजतन, मूंग की मांग में गिरावट देखने को मिल रही है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार अब सक्रिय हो गई है। सरकार ने किसानों को जागरूक करने और टिकाऊ खेती के तरीकों को अपनाने के लिए विशेषज्ञों के माध्यम से प्रशिक्षण अभियान शुरू किया है। लक्ष्य यह है कि खेती का भविष्य सुरक्षित रहे और पर्यावरण को भी बचाया जा सके।