आखिर क्यों रीवा रियासत किसी शासक का गुलाम नही बना,कौन थे यहां के पहले राजा,जाने रोचक अनसुना इतिहास!
Why did Rewa State not become a slave of any ruler, who was the first king here, know the interesting unheard history!
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History of Rewa Riyasat: मध्य प्रदेश जिसे भारत के हृदय प्रदेश के रूप में जाना जाता है, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र है रीवा, जिसे विंध्य क्षेत्र का प्रमुख हिस्सा माना जाता है। यह स्थान ऐतिहासिक, धार्मिक और प्राकृतिक रूप से बेहद खास है।
रीवा: राजाओं की धरती और रामराज्य की परंपरा
रीवा का इतिहास राजघरानों से जुड़ा रहा है। यह क्षेत्र रीवा रियासत के रूप में जाना जाता था, जहां प्रमुख रूप से राजपूत वंश के शासकों का शासन था। इस रियासत की खासियत यह थी कि यहां भगवान राम को राजा माना जाता था, और तत्कालीन राजा स्वयं को उनका सेवक मानकर शासन करते थे। यह परंपरा आज भी रीवा के लोगों के दिलों में बसी हुई है।
रीवा के पुराने समय की राजधानी बांधवगढ़ थी, जिसे वर्तमान में उमरिया के नाम से जाना जाता है। 16वीं शताब्दी में राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में रीवा ने नए रूप में आकार लिया और समृद्धि की ओर बढ़ा। रीवा की एक और अनोखी मान्यता यह है कि यहां भगवान लक्ष्मण को कुल देवता के रूप में पूजा जाता है। महाराजा रघुराज सिंह ने लक्ष्मण मंदिर की स्थापना कर इस परंपरा को और मजबूती दी।
अंग्रेजों और मुगलों के शासन से मुक्त रीवा
भारत में जहां कई रियासतें अंग्रेजों और मुगलों की गुलामी में रहीं, वहीं रीवा रियासत कभी भी पूरी तरह गुलाम नहीं हुई। इसकी प्रमुख वजह यह थी कि यह क्षेत्र प्राकृतिक रूप से घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों से घिरा हुआ था, जिससे यहां पर बाहरी आक्रमणकारियों के लिए आना कठिन था।
रीवा के शासकों की वीरता के किस्से भी काफी प्रसिद्ध हैं। महाराजा रघुराज सिंह के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सोन नदी से रास्ता मांगा, और चमत्कारिक रूप से नदी ने मार्ग दे दिया। एक अन्य घटना में, अंग्रेजों ने जब उनसे संधि तोड़ने का प्रयास किया, तो उन्होंने अपनी तलवार से एक विशाल चट्टान को दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया, जिससे अंग्रेज भी उनकी शक्ति से डर गए।
रीवा: सफेद बाघों की जन्मस्थली
रीवा को विश्वभर में प्रसिद्धि दिलाने वाली एक और महत्वपूर्ण चीज है – सफेद बाघ। यह दुनिया का पहला स्थान है जहां सबसे पहला सफेद बाघ देखा गया था। 1951 में महाराजा मार्तंड सिंह ने एक सफेद बाघ को पकड़ा और उसे मोहन नाम दिया। आज दुनियाभर में जितने भी सफेद बाघ मौजूद हैं, वे सभी मोहन की ही संतान माने जाते हैं।
महान विभूतियों की जन्मभूमि
रीवा न केवल अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए, बल्कि अपनी महान विभूतियों के लिए भी प्रसिद्ध है। अकबर के नवरत्नों में शामिल दो महान व्यक्तित्व – बीरबल और तानसेन – का गहरा संबंध रीवा से है। बीरबल अपनी बुद्धिमानी और हास्य के लिए प्रसिद्ध थे, जबकि तानसेन अपने संगीत के लिए। यह कहा जाता है कि तानसेन के रागों से बारिश तक हो जाती थी।
रीवा: एक रहस्यमयी और गौरवशाली भूमि
रीवा की भूमि अपने अंदर कई ऐतिहासिक रहस्यों को समेटे हुए है। यह न केवल राजाओं और योद्धाओं की भूमि रही है, बल्कि धार्मिक मान्यताओं, प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहरों का भी केंद्र रही है।
आज भी रीवा अपनी अनूठी परंपराओं और गौरवशाली इतिहास के कारण पूरे भारत में सम्मान का स्थान रखता है। यह स्थान सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, वीरता और परंपराओं का प्रतीक है।
यह कहानी उस समय की है जब हमारे पूर्वजों की कई पीढ़ियाँ बीत चुकी थीं, यानी 17वीं शताब्दी के पहले का दौर। उस समय रीवा आज की तरह विकसित नहीं था, बल्कि हरे-भरे जंगलों और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक छोटा सा गाँव था।
शेरशाह सूरी और इस्लाम शाह का आगमन
16वीं शताब्दी के मध्य, जब दिल्ली की सत्ता पर शेरशाह सूरी का राज था, तभी उनका पुत्र इस्लाम शाह सूरी रीवा पहुँचा और यहाँ नगर बसाने की योजना बनाई। लेकिन 1545 में शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद इस्लाम शाह को दिल्ली लौटना पड़ा, जहाँ वह दिल्ली का नया बादशाह बना। उसके जाने के बाद रीवा की स्थिति अनिश्चित हो गई, जैसे किसी नई-नई दुल्हन का अचानक से रिश्ता टूट जाए और कोई दूसरा सहारा न मिले।
रीवा का पुनर्निर्माण और राजा विक्रमादित्य
इस्लाम शाह के जाने के बाद करीब 60 वर्षों तक रीवा उपेक्षित रहा। इस अवधि को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है—कुछ इसे 1597 का, कुछ 1558 का, तो कुछ 1600 या 1674 का समय बताते हैं। इतिहासकार रामपियारे अग्निहोत्री, जितेन सिंह और असद खान इस विषय पर अलग-अलग राय रखते हैं।
करीब छह दशकों के बाद, बांधवगढ़ के बघेलवंशी राजा विक्रमादित्य एक दिन शिकार पर निकले। जंगलों में उनके शिकारी कुत्ते एक खरगोश का पीछा कर रहे थे। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह खरगोश डरकर भागने के बजाय डटकर कुत्तों का सामना करने लगा।
यह देखकर राजा विक्रमादित्य चकित रह गए और सोचने लगे कि अगर इस भूमि पर इतना साहसी खरगोश हो सकता है, तो यहाँ के लोग भी निडर होंगे। इसी विचार से प्रेरित होकर उन्होंने इस स्थान पर एक सुंदर महल का निर्माण कराया और रीवा नगर को फिर से बसाया।
इतिहासकारों की राय और रीवा का विकास
कुछ इतिहासकार इस घटना को ऐतिहासिक तथ्य नहीं मानते, लेकिन यह निश्चित है कि राजा विक्रमादित्य ने रीवा को पुनः बसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके प्रयासों से रीवा धीरे-धीरे समृद्ध हुआ और कालांतर में एक महत्वपूर्ण नगर के रूप में स्थापित हो गया। इस प्रकार, रीवा की यह ऐतिहासिक यात्रा संघर्ष, पुनर्निर्माण और साहस से भरी रही, जिसने इसे आज की पहचान दिलाई।