Rewa news पुलिस अधीक्षक रीवा की ट्रांसफर-पोस्टिंग लिस्ट से ‘घाघ’ आरक्षक अभी भी अछूते
रीवा जिले की पुलिसिंग व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। कभी पुलिस द्वारा पैसे लेने का वीडियो वायरल होता है, तो कभी आम जनता से बदतमीजी करने का। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि कई प्रधान आरक्षक वर्षों से एक ही थाने में कुंडली मारकर बैठे हैं। ये लोग मनमानी करते हैं और न्याय चाहने वाले लोगों के लिए बाधा बन जाते हैं।
यह चौंकाने वाली बात है कि जिन पुलिसकर्मियों को नियमानुसार थानों से बदल देना चाहिए, वे सालों से अपनी जगह पर जमे हुए हैं, वहीं नए पुलिसकर्मी कुछ ही महीनों में एक थाने से दूसरे थाने में भेज दिए जाते हैं। आखिर इस जिले की पुलिसिंग में ऐसा क्या है कि अच्छे पुलिसकर्मी एक जगह नहीं रहना चाहते, लेकिन कुछ भ्रष्ट प्रधान आरक्षी बरसों से एक ही थाने में अंगद के पैर की तरह जमे हुए हैं?
इनकी सर्जरी के बाद ही कानून व्यवस्था में कसावट आ सकती है। हालांकि, ऐसा लगता है कि इसकी भनक पुलिस अधीक्षक विवेक सिंह को नहीं लग पा रही है। उन्होंने कुछ दिन पहले ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की सूची बनवाई थी, लेकिन कुछ प्रधान आरक्षी और भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की सेटिंग-गेटिंग की वजह से इनकी लिस्ट बन नहीं पाई। ऐसा भी कह सकते हैं कि इन पर पुलिस अधीक्षक की नजर ही नहीं गई।
रीवा जिले में कई ऐसे मलाईदार थानों में प्रधान आरक्षी अपनी सिफारिशों के दम पर लंबे समय से जमे हुए हैं। कोई रीडर तो कोई मददगार बनकर एक ही स्थान पर टिका हुआ है। इस वजह से कानून व्यवस्था में अपेक्षित कसावट नहीं दिख रही है। इनमें से कई ऐसे भी हैं जिनकी अपराधियों से पूरी साठ-गांठ है, जिनके बारे में लगातार शिकायतें मिल रही हैं।
कुछ आरक्षक ऐसे भी हैं जिनकी लगभग पूरी नौकरी रीवा शहर में ही कट गई। वे दूसरे जिलों की तो बात छोड़िए, कभी तराई अंचल की तरफ भी नहीं गए। ये आरक्षक से ए.एस.आई. तक बन गए हैं और ऐसे आरक्षक सिर्फ शहरी थानों में धमा-चौकड़ी मचाते हुए, सोमरस का सेवन करते हुए, भ्रष्टाचार और अपराध को बढ़ावा देते हुए दादा-भाई बनकर घूम-घूम कर संबंधित थाना क्षेत्र की जनता के अंदर अपनी दहशत फैलाते हैं और रौब झाड़ते हैं। सफेदपोश नेताओं के संरक्षण में ये आरक्षक कई सालों से सिर्फ शहरी थानों में पदस्थ हैं और आखिर ये हटें भी क्यों, इनकी सेटिंग-गेटिंग जो खत्म हो जाएगी!
ये वही आरक्षक हैं जो दूसरे जिले से लाकर शराब बेचने वाले पैकरों को संरक्षण देते हैं। क्षेत्र में होने वाली सभी गतिविधियों में यह मुख्य भूमिका निभाते हैं। थाने में आने वाले पीड़ितों को परेशान करने से लेकर गलत तरीके से पैसों की भी मांग करते हैं। जब नए थाना प्रभारी ज्वाइन करते हैं, तब ये पुराने वॉलंटियरों को टारगेट कर उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं। टी.आई. उनकी कार्यप्रणाली से गदगद हो जाते हैं। उसके बाद ये थाना प्रभारी की आंखों में धूल झोंककर धड़ल्ले से अन्य गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं। इतना ही नहीं, जुआ, सट्टा, कबाड़ी और शराब बिकवाते हैं, और पैसे उगाही का कार्य करते हैं।
यह सिलसिला करीब पिछले 12 सालों से चला आ रहा है, लेकिन इन्हें कोई दूसरे जिले की बात तो छोड़ो, इन्हें कोई ग्रामीण थानों में भी नहीं भेज पाया। इस बार आम जनमानस को जिले के मुखिया, पुलिस अधीक्षक विवेक सिंह से बड़ी उम्मीद थी कि ऐसे आरक्षकों को कम से कम ग्रामीण थानों की तरफ तो उनका रुख करा ही देंगे, लेकिन अब आम जनमानस की उम्मीदों पर पानी फिरता हुआ दिख रहा है।